शनिवार, 14 मार्च 2009

विविधा


1 टिप्पणी:

  1. माना उद्योगों से, मिलते रोजगार हैं,

    दोहन श्रमिकों का करके देते पगार हैं।


    बस्ती में बहता इनका जहरीला पानी,

    लील रहा जाने कितनी मासूम जवानी।


    शासन-प्रशासन भी इसको नही रोकने वाला है,

    बिके हुए हर नेता के, मुँह पर लटका ताला है।

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